Champai Soren: झारखंड का ‘कोल्हान टाइगर’ जिसने किया गुरुजी का साथ, और आज झामुमो से बगावत की राह पर
झारखंड की राजनीति में एक नया भूचाल तब आया जब चंपई सोरेन ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) नेतृत्व पर अपमानित करने का आरोप लगाते हुए बगावती तेवर अपना लिए। वह पार्टी छोड़ने के संकेत दे रहे हैं और संभवतः भाजपा में शामिल हो सकते हैं। यह घटनाक्रम झारखंड की राजनीति को एक नया मोड़ दे सकता है। आइए जानते हैं चंपई सोरेन के इस राजनीतिक सफर की कहानी।
गुरुजी के सहयोगी से बागी नेता तक
चंपई सोरेन, जो कभी झारखंड राज्य आंदोलन के प्रमुख और झामुमो के संरक्षक शिबू सोरेन उर्फ गुरुजी के सबसे करीबी सहयोगी हुआ करते थे, आज उसी पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल चुके हैं। उनका कहना है कि उन्हें पार्टी नेतृत्व ने अपमानित किया है और सीएम पद से हटने के लिए मजबूर किया गया।
बीते दिनों चंपई सोरेन ने यह खुलासा किया कि उनके पास तीन विकल्प हैं—राजनीति से संन्यास लेना, नई पार्टी का गठन करना या फिर किसी दूसरी पार्टी का हिस्सा बनना। इन सभी विकल्पों में से सबसे चर्चित संभावना है कि वह भाजपा का दामन थाम सकते हैं। अगर ऐसा होता है, तो यह झामुमो और खासकर हेमंत सोरेन के लिए एक बड़ा झटका होगा, क्योंकि चंपई का झारखंड में खासा प्रभाव है।
राजनीतिक सफर की शुरुआत
चंपई सोरेन का जन्म सरायकेला-खरसावां जिले के एक छोटे से गाँव जिलिंगगोड़ा में हुआ था। एक गरीब किसान परिवार में जन्मे चंपई ने झारखंड के आदिवासी समुदाय के अधिकारों के लिए संघर्ष करने का बीड़ा उठाया। वह 10वीं तक ही पढ़ पाए क्योंकि उनकी सारी ऊर्जा झारखंड आंदोलन में लग गई थी। चंपई के करीबी बताते हैं कि उनके दिल में हमेशा गाँव के आदिवासियों की भलाई का ख्याल रहा, और यही उनकी राजनीति का मुख्य उद्देश्य बना।
1970 के दशक में जब झारखंड राज्य का आंदोलन जोर पकड़ रहा था, चंपई ने अपने समर्थकों को संगठित करना शुरू किया। उन्हें “कोल्हान का टाइगर” कहकर बुलाया जाने लगा क्योंकि उन्होंने इस क्षेत्र के आदिवासियों के हितों के लिए लड़ाई लड़ी। 1993 में उनके खिलाफ विस्फोटक पदार्थ अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया, लेकिन उन्होंने इसे राजनीतिक साजिश बताया।
राजनीतिक चुनौतियाँ और सफलता
1995 में चंपई ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में सरायकेला विधानसभा सीट से जीत हासिल की, और तभी से उनकी चुनावी यात्रा शुरू हुई। हालांकि, 2000 में वह भाजपा से हार गए थे, लेकिन उसके बाद के चार चुनावों में उन्होंने लगातार जीत दर्ज की। उनके समर्थकों का कहना है कि चंपई का जनसंपर्क मजबूत रहा है और वह हमेशा जरूरतमंद लोगों की मदद करते हैं। यह भी उनकी लगातार चुनावी सफलता का एक बड़ा कारण है।
हेमंत सोरेन और चंपई के बीच दरार
झारखंड में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सरकार बनने के बाद जब चंपई को मंत्री पद से हटाया गया, तो उनके और हेमंत के बीच तनातनी शुरू हो गई। हालाँकि चंपई ने यह कुर्सी छोड़ दी, लेकिन उन्होंने स्पष्ट किया कि यह उनके लिए आसान फैसला नहीं था। सूत्रों के अनुसार, चंपई इस बात से आहत थे कि इतने लंबे समय से पार्टी के साथ रहने के बावजूद उन्हें अपमानित किया गया।
उनकी बगावत को देखते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भाजपा पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि भाजपा उनके विधायकों को खरीदने की कोशिश कर रही है और समाज में फूट डालने का प्रयास कर रही है। हेमंत का यह बयान चंपई के भविष्य की राजनीति के संदर्भ में बेहद अहम है क्योंकि अब चर्चा है कि वह भाजपा में शामिल हो सकते हैं।
झारखंड आंदोलन का योद्धा
चंपई सोरेन का झारखंड राज्य के लिए योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता। उन्होंने शिबू सोरेन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर झारखंड आंदोलन को गति दी और राज्य की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके समर्थकों के बीच उनकी छवि एक सच्चे योद्धा की है, जिसने झारखंड के आदिवासियों के हक के लिए लंबी लड़ाई लड़ी है।
सत्ता में रहते हुए चंपई ने कल्याण और परिवहन जैसे मंत्रालयों का सफल संचालन किया। उनके आलोचक भी मानते हैं कि उनके कुछ कार्यकालों के दौरान विभाग में खामियाँ रही, लेकिन उनकी नेतृत्व क्षमता पर कभी सवाल नहीं उठे। चंपई ने अपनी लोकप्रियता के दम पर जेएमएम को मजबूत किया और आदिवासी समुदाय के बीच पार्टी की पकड़ को बनाए रखा।
भाजपा का नया चेहरा?
अब सवाल यह उठता है कि चंपई भाजपा में शामिल होकर अपनी राजनीतिक पारी कैसे खेलेंगे? अगर वह भाजपा में जाते हैं, तो यह झामुमो और हेमंत सोरेन के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो सकती है। चंपई के भाजपा में जाने से आदिवासी वोट बैंक में बदलाव आ सकता है, जिससे झारखंड की राजनीति का पूरा समीकरण बदल सकता है।
भाजपा की रणनीति भी इस समय चंपई जैसे प्रभावशाली नेता को अपने साथ जोड़ने की होगी, ताकि आदिवासी समुदाय में पार्टी की पकड़ मजबूत हो सके। झारखंड की राजनीति में आदिवासी समुदाय की भूमिका हमेशा से अहम रही है, और चंपई जैसे नेताओं का समर्थन भाजपा के लिए राज्य की सत्ता हासिल करने में मददगार हो सकता है।
चंपई सोरेन का राजनीतिक सफर न केवल झारखंड की राजनीति के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह उन नेताओं की गाथा भी है जिन्होंने राज्य की स्थापना के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। आज वह जिस चौराहे पर खड़े हैं, वहाँ से उनकी अगली चाल झारखंड की राजनीतिक तस्वीर को बदल सकती है। क्या चंपई भाजपा के साथ नए सफर की शुरुआत करेंगे या फिर नई पार्टी बनाकर स्वतंत्र रूप से अपने राजनीतिक करियर को आगे बढ़ाएंगे? यह समय बताएगा। एक बात तो साफ है कि चंपई सोरेन की राजनीति झारखंड के लिए अभी भी उतनी ही महत्वपूर्ण है, जितनी वह झारखंड आंदोलन के दौरान थी।