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“भारत के लिए स्वर्ण! Avani lekhara और मोना अग्रवाल ने किया देश को गौरवान्वित” 

“भारत के लिए स्वर्ण! Avani lekhara और मोना अग्रवाल ने किया देश को गौरवान्वित”

भारत के खेल इतिहास में एक और सुनहरा अध्याय जुड़ गया है, जब अवनि लेखरा ने पैरालंपिक खेलों में दूसरी बार स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया। इस असाधारण उपलब्धि ने न केवल भारत का नाम रोशन किया, बल्कि अवनि को पैरालंपिक में दो स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बना दिया। पेरिस पैरालंपिक में अवनि का शानदार प्रदर्शन भारतीय खेल प्रेमियों के लिए गर्व का क्षण है।

अवनि लेखरा की उल्लेखनीय यात्रा

अवनि की यात्रा कठिनाईयों से भरी रही है, लेकिन उनके दृढ़ संकल्प और आत्मविश्वास ने उन्हें कभी हारने नहीं दिया। मात्र 11 साल की उम्र में एक कार दुर्घटना के कारण कमर के नीचे लकवाग्रस्त हो जाने के बावजूद, अवनि ने अपनी जिंदगी को एक नई दिशा दी। जयपुर के जगतपुरा शूटिंग रेंज में 2015 में शुरू हुई उनकी शूटिंग यात्रा ने उन्हें एक नए मुकाम पर पहुँचाया। अवनि का सफर सिर्फ़ व्यक्तिगत जीत तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उन्होंने पूरे देश को प्रेरित किया है।

टोक्यो से पेरिस तक का सफर

अवनि, जिन्होंने पहले टोक्यो पैरालंपिक में स्वर्ण पदक जीता था, ने पेरिस पैरालंपिक में भी अपने प्रदर्शन की छाप छोड़ी। महिलाओं की 10 मीटर एयर राइफल फाइनल (एसएच1) में उन्होंने क्वालीफिकेशन राउंड में 625.8 अंक हासिल किए, जिससे वे इरीना शचेतनिक के करीब रहीं, जिन्होंने 627.5 अंक के साथ नया रिकॉर्ड बनाया। लेकिन अंतिम फाइनल राउंड में अवनि ने 10.5 का शानदार स्कोर कर अपने प्रतिद्वंद्वी युनरी को पछाड़ते हुए 249.7 के स्कोर के साथ स्वर्ण पदक अपने नाम किया। इस स्कोर के साथ उन्होंने अपने ही पुराने रिकॉर्ड को तोड़ दिया।

मोना अग्रवाल की प्रेरणादायक कहानी

अवनि के साथ ही, मोना अग्रवाल ने भी पेरिस पैरालंपिक में कांस्य पदक जीतकर भारत का मान बढ़ाया। मोना, जो पहली बार पैरालंपिक में भाग ले रही थीं, उन्होंने अपनी यात्रा में अनगिनत चुनौतियों का सामना किया। पोलियो से ग्रस्त मोना ने 2010 में अपने सपनों को पूरा करने के लिए घर छोड़ा था। बावजूद इसके कि उन्हें 2016 तक पैरालंपिक जैसी प्रतियोगिताओं का कोई अंदाजा नहीं था, उन्होंने ढाई साल पहले निशानेबाजी शुरू की और अब उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मंच पर देश का नाम रोशन किया।

मोना के लिए यह सफर आसान नहीं था। शूटिंग रेंज में बिताए समय के दौरान अपने बच्चों से दूर रहना और वित्तीय समस्याओं से जूझना, उनके संघर्षों का हिस्सा था। लेकिन इन सभी कठिनाइयों के बावजूद, मोना ने अपने पहले पैरालंपिक में कांस्य पदक जीतने का सपना पूरा किया। उनके इस संघर्ष और सफलता की कहानी हर भारतीय के लिए प्रेरणादायक है।

अवनि लेखरा: एक प्रेरणा की मिसाल

अवनि की यह उपलब्धि न सिर्फ़ उनके कौशल और धैर्य का प्रमाण है, बल्कि उनके अदम्य साहस और आत्मविश्वास की भी मिसाल है। 2012 की दुर्घटना के बाद, जब उनकी जिंदगी बदल गई थी, उन्होंने हार नहीं मानी। ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता अभिनव बिंद्रा की आत्मकथा से प्रेरित होकर, अवनि ने कोच चंद्र शेखर के तहत कठोर प्रशिक्षण शुरू किया और बाद में पूर्व एयर राइफल ओलंपियन सुमा शिरुर को अपना गुरु बनाया। अवनि की लगन और मेहनत का नतीजा था कि 2017 में बैंकॉक में उन्होंने वर्ल्ड शूटिंग पैरा स्पोर्ट वर्ल्ड कप में कांस्य पदक जीता।

अवनि लेखरा और मोना अग्रवाल ने पैरालंपिक खेलों में अपनी मेहनत और समर्पण से देश को गौरवान्वित किया है। अवनि ने अपनी दूसरी स्वर्णिम सफलता के साथ भारत की खेल इतिहास में नया अध्याय जोड़ा है, और मोना ने अपनी प्रथम भागीदारी में ही कांस्य पदक जीतकर आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित किया है। उनकी यह उपलब्धि सभी भारतीयों के लिए गर्व का विषय है, और उनकी कहानियाँ निश्चय ही आने वाले समय में कई और अवनि और मोना को जन्म देंगी, जो भारत को और भी ऊँचाइयों तक पहुँचाएंगी।

 

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