अडानी घोटाले में सेबी अध्यक्ष की भूमिका: New hindenburg Report खुलासे

हिंडनबर्ग रिसर्च की एक नई रिपोर्ट ने भारतीय वित्तीय जगत में हलचल मचा दी है। इस रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) की अध्यक्ष, माधबी बुच, और उनके पति का अडानी समूह से जुड़े विदेशी संस्थाओं में आर्थिक हित था, जो कथित तौर पर वित्तीय कदाचार में संलिप्त हैं।

सेबी और अडानी का विवाद

हिंडनबर्ग रिसर्च ने दावा किया है कि 18 महीने पहले जारी अडानी समूह पर उनकी निंदात्मक रिपोर्ट के बाद से सेबी ने मॉरीशस और अन्य अपतटीय मुखौटा संस्थाओं में कथित तौर पर छुपे हुए अडानी के जाल की जांच में रुचि नहीं दिखाई है। यह संस्थाएं वही हैं जिन्हें गौतम अडानी के भाई विनोद अडानी ने वित्तीय बाजारों में हेरफेर करने के लिए उपयोग किया था।

माधबी बुच के विवादित निवेश

रिपोर्ट के अनुसार, माधबी बुच और उनके पति ने बरमूडा और मॉरीशस में अज्ञात ऑफशोर फंडों में निवेश किया था, जिसकी सूचना सेबी के रिकॉर्ड में नहीं थी। ये निवेश 2015 के समय से चल रहे थे, जो 2017 में माधबी बुच की सेबी के पूर्णकालिक सदस्य के रूप में नियुक्ति से पहले की बात है। जब वे 2022 में सेबी की अध्यक्ष बनीं, तो उनके पति ने इन निवेशों को अपने नियंत्रण में स्थानांतरित करने की अनुमति मांगी, ताकि किसी भी संभावित जांच से बचा जा सके।

अडानी समूह और सेबी के बीच संभावित संघर्ष

हिंडनबर्ग की रिपोर्ट बताती है कि अडानी समूह के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई करने में सेबी की कमी का एक कारण बुच के इन अपतटीय संस्थाओं के साथ व्यक्तिगत संबंध हो सकते हैं। रिपोर्ट में उनके रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट (REIT) को बढ़ावा देने की भूमिका का भी जिक्र है, जिससे ब्लैकस्टोन जैसी कंपनियों को लाभ हुआ, जहां उनके पति एक वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं।

निष्कर्ष

हिंडनबर्ग रिपोर्ट ने अडानी समूह पर लगाए गए आरोपों की श्रृंखला में एक और महत्वपूर्ण अध्याय जोड़ा है। जनवरी 2023 की रिपोर्ट में अडानी पर स्टॉक हेरफेर और वित्तीय कदाचार का आरोप लगाया गया था, जिसके परिणामस्वरूप अडानी के शेयर की कीमतों में भारी गिरावट आई थी।

इस नए खुलासे के बाद, हिंडनबर्ग रिसर्च ने सोशल मीडिया पर यह संकेत दिया कि भारत में कुछ बड़ा घटित होने वाला है, जिससे निवेशकों और विश्लेषकों के बीच उत्सुकता बढ़ गई है।

सवाल और विचार

यह विवाद भारतीय वित्तीय नियामकों की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर सवाल खड़े करता है। क्या सेबी जैसी संस्थाएं व्यक्तिगत हितों से प्रभावित हो रही हैं? यह सवाल भारतीय बाजार के भविष्य और उसकी विश्वसनीयता के लिए महत्वपूर्ण है।

 

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