Site icon khabarkona247.com

Paralympics 2024: 17 साल की उम्र में तीरंदाजी में रचा इतिहास, जानिए कौन हैं शीतल देवी

Paralympics 2024: 17 साल की उम्र में तीरंदाजी में रचा इतिहास, जानिए कौन हैं शीतल देवी

पेरिस में हो रहे पैरालिंपिक 2024 में भारत का सबसे बड़ा दल मैदान में उतरा है, और इस बार का लक्ष्य है अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन। इसी कड़ी में 17 वर्षीय शीतल देवी ने इतिहास रच दिया है। उन्होंने तीरंदाजी की दुनिया में वह मुकाम हासिल किया है, जो किसी भी युवा के लिए प्रेरणा से कम नहीं। शीतल ने न सिर्फ व्यक्तिगत कंपाउंड रैंकिंग राउंड में 703 अंक हासिल कर दूसरे स्थान पर कब्जा जमाया, बल्कि अपने साथी राकेश कुमार के साथ मिलकर 1399 का नया मिश्रित कंपाउंड विश्व रिकॉर्ड भी बना दिया।

कौन हैं शीतल देवी?

शीतल देवी की कहानी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है। जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले में 10 जनवरी 2007 को जन्मी शीतल फोकोमेलिया नामक बीमारी के साथ पैदा हुईं। इस बीमारी के चलते उनके हाथ नहीं हैं, लेकिन हौसले आसमान छू रहे हैं। शीतल, पैरा तीरंदाजी में भाग लेने वाली उन चुनिंदा चार खिलाड़ियों में शामिल हैं, जिनके हाथ नहीं हैं। लेकिन कहते हैं न, अगर हिम्मत और जुनून हो, तो कोई भी कमी मायने नहीं रखती। यही बात शीतल पर सटीक बैठती है।

शीतल की प्रेरणादायक यात्रा

2019 में, शीतल की काबिलियत पर भारतीय सेना की राष्ट्रीय राइफल्स इकाई की नजर पड़ी। इसके बाद शीतल की शिक्षा और चिकित्सा सहायता का जिम्मा सेना ने उठाया। डॉक्टरों ने कहा था कि शीतल को कृत्रिम अंग लगाना संभव नहीं है, लेकिन शीतल ने अपने पैरों से ऐसा कमाल कर दिखाया कि प्रशिक्षक भी दंग रह गए। पेड़ों पर चढ़ना और पैरों से तीरंदाजी करना उनके लिए सामान्य बात हो गई।

शीतल के कोच ने उन्हें अमेरिकी तीरंदाज मैट स्टुट्ज़मैन की शैली में प्रशिक्षण देना शुरू किया। मैट खुद भी बिना हाथ के थे और पैरों का इस्तेमाल कर तीरंदाजी करते थे। शीतल ने महज 11 महीनों के भीतर 2022 एशियाई पैरा खेलों में हिस्सा लेकर दो स्वर्ण पदक जीतकर सबको चौंका दिया। महिलाओं के डबल कंपाउंड में रजत जीतने के बाद उन्होंने मिश्रित युगल और महिला व्यक्तिगत में दो स्वर्ण पदक जीते। शीतल अब तक की पहली और एकमात्र अंतरराष्ट्रीय पैरा-तीरंदाज चैंपियन हैं, जिन्होंने बिना ऊपरी अंगों के यह उपलब्धि हासिल की है।

सम्मान और उपलब्धियाँ

शीतल की मेहनत और समर्पण का नतीजा उन्हें 2023 में मिला जब उन्हें एशियाई पैरालंपिक समिति द्वारा ‘वर्ष के सर्वश्रेष्ठ युवा एथलीट’ का पुरस्कार दिया गया। भारत सरकार ने भी उनकी उपलब्धियों को सराहा और उन्हें 2023 में अर्जुन पुरस्कार से नवाजा। शीतल ने साबित कर दिया है कि शारीरिक कमी किसी भी इंसान के सपनों के आड़े नहीं आ सकती, बशर्ते कि उसके पास हौसला और लगन हो।

आने वाले मुकाबले

2 सितंबर को शीतल मिश्रित टीम कंपाउंड तीरंदाजी क्वार्टर फाइनल में उतरेंगी, और देश को उनसे एक और शानदार प्रदर्शन की उम्मीद है। व्यक्तिगत महिला कंपाउंड स्पर्धा में, वह तुर्की की ओ. क्योर के विश्व रिकॉर्ड से केवल एक अंक पीछे रहीं, जो उनके आने वाले मुकाबलों में और बेहतर करने के इरादे को दर्शाता है।

 

शीतल देवी की कहानी न केवल प्रेरणा देती है, बल्कि यह भी बताती है कि इंसान अपनी कमजोरी को अपनी ताकत में कैसे बदल सकता है। उनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि यदि हम अपनी चुनौतियों को स्वीकार करें और उन पर काम करें, तो दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है।

 

Exit mobile version