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Supreme Court : Child pornograpy देखना, डाउनलोड करना अपराध

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Supreme Court ने पलटा मद्रास हाई कोर्ट का फैसला

भारत के सर्वोच्च न्यायालय(Supreme Court)ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि नाबालिगों से संबंधित अश्लील सामग्री(Child pornograpy)देखना या उसका संग्रह करना अब अपराध की श्रेणी में आता है, जो ‘प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेन्सेस’ (पॉक्सो) एक्ट के तहत दंडनीय होगा। यह निर्णय न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह समाज की नैतिक और सांस्कृतिक मान्यताओं को भी सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह लेख इस निर्णय के कानूनी, सामाजिक और नैतिक पहलुओं पर चर्चा करेगा और इसके प्रभावों को व्यापक दृष्टिकोण से समझने का प्रयास करेगा।

Supreme Court : पॉक्सो एक्ट का महत्व

‘प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेन्सेस एक्ट, 2012’ (POCSO Act) का उद्देश्य बच्चों को यौन शोषण और उत्पीड़न से बचाना है। भारत में बच्चों की सुरक्षा के लिए बनाए गए इस कानून के तहत यौन शोषण के विभिन्न रूपों को अपराध माना गया है, जिनमें शारीरिक, मानसिक और साइबर शोषण शामिल हैं। पॉक्सो एक्ट को इसलिए लाया गया ताकि बच्चों के साथ यौन अपराधों की बढ़ती घटनाओं पर अंकुश लगाया जा सके और ऐसे अपराधियों को कड़ी सजा दी जा सके।

 

Supreme Court का ऐतिहासिक निर्णय:

हालिया Supreme Court के फैसले में इस बात पर जोर दिया गया है कि नाबालिगों से संबंधित अश्लील सामग्री देखना या रखना, केवल एक नैतिक दोष नहीं है, बल्कि यह कानूनी अपराध भी है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसी सामग्री का उपभोग करना, चाहे किसी भी रूप में हो (जैसे वीडियो, तस्वीरें, आदि), यह बच्चों के साथ यौन शोषण को प्रोत्साहित करने और उनके जीवन को खतरे में डालने के बराबर है।

यह निर्णय इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे पहले अश्लील सामग्री देखने और रखने के मामले में कानूनी प्रावधान स्पष्ट नहीं थे। हालांकि पॉक्सो एक्ट के तहत अश्लील सामग्री बनाना, बेचना और वितरण करना पहले से ही अपराध माना गया था, लेकिन इसका उपभोग करने वालों को दंडित करने के लिए कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं थे। अब, सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद यह साफ हो गया है कि नाबालिगों से संबंधित अश्लील सामग्री को देखना या रखना भी कानूनी तौर पर अपराध है।

कानूनी और सामाजिक प्रभाव:

यह निर्णय समाज के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश देता है कि नाबालिगों से संबंधित यौन अपराधों(Child pornography) को किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। यह न केवल उन लोगों को चेतावनी देता है जो इस तरह की सामग्री देखते या संग्रहीत करते हैं, बल्कि यह भी संकेत देता है कि कानून प्रवर्तन एजेंसियों को ऐसे अपराधों को रोकने के लिए सख्ती से कदम उठाने होंगे।

Supreme Court का यह फैसला बच्चों के लिए एक सुरक्षित वातावरण बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। बाल यौन शोषण एक गंभीर सामाजिक समस्या है, और इसके खिलाफ उठाए गए कदमों से समाज को एक स्पष्ट संदेश जाएगा कि बच्चों की सुरक्षा सर्वोपरि है।

इसके अलावा, इस निर्णय का कानूनी प्रभाव यह होगा कि इस प्रकार के अपराधों में शामिल लोगों को कड़ी सजा का सामना करना पड़ेगा। पॉक्सो एक्ट के तहत दोषियों को कठोर सजा का प्रावधान है, और Supreme Court के इस फैसले के बाद कानून के तहत कार्रवाई और भी सख्त होगी। यह एक महत्वपूर्ण कदम है जो यौन अपराधों से बच्चों को सुरक्षित रखने में सहायक होगा।

डिजिटल युग और बच्चों की सुरक्षा:

आज के डिजिटल युग में इंटरनेट पर विभिन्न प्रकार की अश्लील सामग्री का प्रवाह आसानी से उपलब्ध है, और इसमें बाल यौन शोषण से संबंधित सामग्री भी शामिल है। इस प्रकार की सामग्री तक बच्चों की पहुंच भी हो सकती है, जिससे उनकी मानसिक और भावनात्मक स्थिति पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

Supreme Court के इस फैसले के बाद, नाबालिगों से संबंधित अश्लील सामग्री को ऑनलाइन देखना भी अब दंडनीय हो गया है। यह फैसला इंटरनेट की दुनिया में भी एक महत्वपूर्ण संदेश भेजता है कि बाल यौन शोषण को किसी भी रूप में प्रोत्साहित नहीं किया जाएगा। इसके साथ ही, यह इंटरनेट सेवा प्रदाताओं और सोशल मीडिया कंपनियों को भी जिम्मेदार बनाता है कि वे ऐसी सामग्री को हटाने और उसके प्रसार को रोकने के लिए कठोर कदम उठाएं।

नैतिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण:

इस निर्णय का नैतिक और सांस्कृतिक महत्व भी अत्यधिक है। भारत जैसे समाज में, जहां नैतिक मूल्यों और पारिवारिक संरचना का विशेष महत्व है, इस तरह की सामग्री का प्रसार बच्चों की मासूमियत को खत्म करने और समाज में नैतिक विकृति फैलाने का काम करता है।

Supreme Court के इस फैसले ने यह भी दिखा दिया है कि समाज की नैतिक जिम्मेदारी है कि वह बच्चों के अधिकारों और उनकी सुरक्षा का सम्मान करे। यह निर्णय समाज के उन लोगों को भी चेतावनी देता है, जो बच्चों के यौन शोषण को किसी भी रूप में सहन करते हैं, कि अब उनके लिए कोई जगह नहीं है।

Supreme Court के फैसले के समक्ष चुनौतियाँ और समाधान:

हालांकि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सराहनीय है, लेकिन इसे लागू करने में कई चुनौतियाँ होंगी। डिजिटल दुनिया में अश्लील सामग्री को नियंत्रित करना एक बड़ा काम है, खासकर जब यह सामग्री विभिन्न प्लेटफार्मों और देशों में वितरित होती है।

इसके समाधान के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। सरकार को इस दिशा में कड़े कदम उठाने होंगे ताकि इस प्रकार की सामग्री के स्रोत को खत्म किया जा सके। साथ ही, साइबर सुरक्षा और पुलिस विभाग को और सशक्त बनाया जाना चाहिए ताकि वे इस प्रकार के अपराधों का पता लगाने और उन्हें रोकने में सक्षम हों।

इसके अलावा, समाज को भी जागरूक करने की आवश्यकता है कि वे इस प्रकार की गतिविधियों में शामिल न हों और ऐसे अपराधों की जानकारी संबंधित अधिकारियों को दें। यह सामाजिक जागरूकता और शिक्षा के माध्यम से ही संभव हो सकता है।

भारत के सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय न केवल कानूनी दृष्टिकोण से बल्कि नैतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी एक मील का पत्थर है। यह उन लोगों के लिए एक कड़ा संदेश है जो नाबालिगों से संबंधित अश्लील सामग्री का उपभोग करते हैं या इसे प्रोत्साहित करते हैं।

यह निर्णय बच्चों की सुरक्षा और उनके अधिकारों की रक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, और यह सुनिश्चित करेगा कि भविष्य में ऐसे अपराधों को किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। अब यह समाज, सरकार और कानून प्रवर्तन एजेंसियों की जिम्मेदारी है कि वे इस फैसले को प्रभावी रूप से लागू करें और बच्चों को सुरक्षित और संरक्षित वातावरण प्रदान करें।

 

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