Egypt

शादी से पहले सहजीवन: क्या यह Egypt में रिश्तों का भविष्य है?

क्या इजिप्ट में अब शादी से पहले सहजीवन की प्रथा स्वीकार्य होने जा रही है?

हाल ही में इजिप्ट ( मिस्र )के एक वकील के बयान ने पूरे देश में हलचल मचा दी है। उन्होंने कपल्स से शादी से पहले साथ रहने का आह्वान किया, जोकि मिस्र के पारंपरिक सामाजिक और धार्मिक मानदंडों के पूरी तरह खिलाफ है। यह चर्चा मिस्र जैसे रूढ़िवादी देश में बड़ी बहस का कारण बन गई है, जहां इस्लामी सिद्धांत और सामाजिक परंपराएं काफी मजबूत मानी जाती हैं।

सामाजिक और धार्मिक मूल्यों की चुनौती

हानी सईद, जोकि Egypt के बार एसोसिएशन की स्वतंत्र समिति के सदस्य हैं, ने एक स्थानीय टीवी चैनल पर दिए बयान में कहा कि मिस्र के कानून शादी से पहले सहजीवन (लिव-इन रिलेशनशिप) पर प्रतिबंध नहीं लगाते। यह बयान अल-अजहर जैसी धार्मिक संस्थाओं के क्रोध का कारण बना, विशेषकर उस समय जब एक प्रसिद्ध महिला फिल्म निर्देशक इनस अल-दघदी ने यह खुलासा किया कि वह अपने पति के साथ नौ साल तक बिना शादी के साथ रही थीं।

इनस की इस बात ने मिस्र के सामाजिक ढांचे में भूचाल ला दिया, लेकिन साथ ही कुछ लोगों के बीच सहजीवन को एक समाधान के रूप में भी पेश किया। कई लोगों का मानना है कि यह तरीका कपल्स को एक-दूसरे को अच्छी तरह जानने में मदद कर सकता है, ताकि वे अपने भविष्य को लेकर सही निर्णय ले सकें।

“यह कपल्स को बेहतर समझने में मदद करता है”

सईद ने यहां तक कहा कि अगर उनकी बेटी किसी से प्यार करती है, तो वह भी उसे शादी से पहले कुछ समय साथ रहने की सलाह देंगे। उनका मानना है कि इससे शादी के बाद रिश्ते की सफलता की संभावना बढ़ जाती है।

“कानून इसकी अनुमति देता है, इसलिए महिलाएं यदि अपनी इच्छा से सहजीवन का चयन करती हैं तो कोई उन्हें रोक नहीं सकता,” सईद ने एक स्थानीय न्यूज़ चैनल पर कहा।

मिस्र में तलाक की दरें तेजी से बढ़ रही हैं, खासकर शादी के पहले पांच वर्षों के भीतर। 2022 में, हर एक मिनट में एक नई शादी हो रही थी, और हर दो मिनट में एक तलाक। मिस्र के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, यह स्थिति परिवारों को बर्बाद कर रही है।

सईद जैसे लोग सहजीवन को एक समाधान के रूप में देखते हैं, जो कपल्स को शादी से पहले एक-दूसरे को गहराई से समझने का मौका देता है। इससे वे यह जान सकते हैं कि क्या उनका रिश्ता शादी के बाद सफल होगा या नहीं।

तलाक की बढ़ती दरों पर चिंताएं

मिस्र में बढ़ती तलाक दरों को देखते हुए राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी ने 2017 में मौखिक तलाक पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव रखा था। उनके मुताबिक, इससे पुरुषों को अपने फैसले पर दोबारा सोचने का मौका मिलेगा और शायद वे अपने परिवारों को तोड़ने से बच सकें। हालांकि, इस्लामी धार्मिक संस्था अल-अजहर ने इस प्रस्ताव को धार्मिक आधार पर खारिज कर दिया।

मशहूर हस्तियों ने दिया साथ

इनस अल-दघदी के बयान के बाद कई मशहूर हस्तियों ने भी सहजीवन के पक्ष में अपने विचार साझा किए। मिस्र के गायक मोहम्मद अतिया ने कहा कि वह शादी किए बिना अपनी प्रेमिका के साथ रहना पसंद करेंगे। लेबनानी गायिका माया दियाब ने भी इसी विचार का समर्थन किया, यह बताते हुए कि उन्होंने शादी से पहले अपने पति के साथ कुछ समय साथ बिताया था

हालांकि, इन विचारों का समर्थन अभी तक कुछ हद तक सीमित है और मुख्यतः मशहूर हस्तियों या उच्च वर्ग के लोगों तक ही सीमित है, लेकिन यह संकेत है कि समाज के कुछ हिस्सों में सहजीवन के विचार में बदलाव हो सकता है।

धार्मिक संस्थाओं का कड़ा विरोध

मिस्र की मुस्लिम बहुसंख्यक आबादी शादी से पहले शारीरिक संबंधों को नकारात्मक दृष्टि से देखती है, जो इस्लामिक नियमों पर आधारित है। अल-अजहर ने सहजीवन को व्यभिचार (ज़िना) के समान बताया और इसे महिलाओं के सम्मान के खिलाफ और उनके अधिकारों का हनन बताया।

अल-अजहर के फ़तवा केंद्र के प्रमुख शेख़ उसामा अल-हदीदी ने कहा, “इस्लाम में पुरुष और महिलाएं केवल शादी के माध्यम से ही साथ रह सकते हैं, अन्यथा उनका रिश्ता इस्लामी नियमों के खिलाफ होगा।”

सईद और इनस के विचारों को धार्मिक रूढ़िवादी वर्ग, विशेष रूप से सलाफी, भी कड़ी आलोचना कर रहे हैं। सलाफियों का मानना है कि सहजीवन का समर्थन समाज की नैतिकता को नष्ट करने का प्रयास है।

भविष्य की दिशा

सईद का यह विचार मिस्र में एक नए सामाजिक संवाद की शुरुआत हो सकता है। हालांकि उनके विचारों को व्यापक स्वीकृति नहीं मिल रही है, लेकिन यह संभव है कि आने वाले समय में सहजीवन जैसे मुद्दों पर समाज में खुलकर बहस हो। मिस्र की युवा पीढ़ी, जो शिक्षा और रोजगार के कारण अधिक स्वतंत्र और वैश्विक दृष्टिकोण अपना रही है, शायद इस मुद्दे पर एक अलग नज़रिया रख सकती है।

क्या सहजीवन मिस्र में मान्य होगा?

यह सवाल उठता है कि क्या मिस्र जैसे रूढ़िवादी देश में सहजीवन का विचार स्वीकार्य हो सकता है? जहां एक तरफ तलाक की बढ़ती दरें समाज के लिए गंभीर चिंता का विषय हैं, वहीं सहजीवन को रिश्तों की स्थिरता को बेहतर बनाने का एक उपाय माना जा सकता है।

लेकिन धार्मिक संस्थाओं और पारंपरिक समाज का दबाव भी कम नहीं है। शायद यह मुद्दा भविष्य में और बड़ा रूप ले सकता है, क्योंकि समाज के कुछ हिस्से इस विचार की ओर झुकाव दिखा रहे हैं।

निष्कर्ष

मिस्र में सहजीवन के मुद्दे ने समाज के विभिन्न वर्गों में मतभेद पैदा किए हैं। एक तरफ पारंपरिक धार्मिक संस्थाएं इसे समाज के नैतिक ढांचे के खिलाफ मानती हैं, तो दूसरी तरफ युवा पीढ़ी और कुछ मशहूर हस्तियां इसे रिश्तों में स्थिरता लाने का एक माध्यम मानती हैं। आने वाले वर्षों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या मिस्र के सामाजिक ताने-बाने में यह विचार किसी तरह से जगह बना पाता है या नहीं।

 

 

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