Lidia Thorpe : कौन हैं वो ऑस्ट्रेलियाई सीनेटर जिन्होंने किंग चार्ल्स को संसद में ललकारा?
Lidia Thorpe , एक स्वतंत्र ऑस्ट्रेलियाई सीनेटर, हाल ही में चर्चा में आईं जब उन्होंने किंग चार्ल्स पर संसद में आरोप लगाए और उन्हें “मेरे राजा नहीं हैं” कहकर संबोधित किया। थॉर्प ने ब्रिटिश साम्राज्य पर आदिवासी जनजातियों के खिलाफ नरसंहार का आरोप लगाते हुए उनसे ज़मीन और अन्य चोरी किए गए संसाधनों को वापस करने की मांग की। उनके इस आक्रामक विरोध का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और इससे एक बार फिर ऑस्ट्रेलिया में गणराज्य और आदिवासी अधिकारों पर बहस शुरू हो गई।
लीडिया थॉर्प (Lidia Thorpe) कौन हैं?
Lidia Thorpe का जन्म 1973 में विक्टोरिया राज्य के कार्लटन में हुआ था। वह गुनाई, गुंडिट्ज़मारा, और जाब वुरुंग जनजातियों से संबंधित हैं और ऑस्ट्रेलिया में आदिवासी अधिकारों के लिए लंबे समय से आवाज़ उठा रही हैं। उन्होंने स्विनबर्न यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी से कम्युनिटी डिवेलपमेंट में डिप्लोमा और पब्लिक सेक्टर मैनेजमेंट में ग्रैजुएट सर्टिफिकेट हासिल किया है। थॉर्प ब्रिटिश साम्राज्य और उसकी नीतियों की मुखर आलोचक रही हैं, खासकर ऑस्ट्रेलिया में आदिवासी समुदायों के संदर्भ में।
लीडिया थॉर्प की राजनीतिक यात्रा
लीडिया थॉर्प की राजनीतिक यात्रा 2017 में विक्टोरियन लेजिस्लेटिव असेंबली में नॉर्थकोट सीट से शुरू हुई। वह यहां एक उपचुनाव में जीती थीं, जहां उन्होंने 45 प्रतिशत से अधिक वोट प्राप्त किए। हालांकि, 2018 में वह यह सीट लेबर पार्टी की कैंडिडेट कैट थियोफेनस से हार गईं।
2020 में, उन्हें विक्टोरिया ग्रीन्स पार्टी के सदस्यों ने फेडरल सीनेट सीट के लिए चुना, जो रिचर्ड डी नटाले के इस्तीफे के बाद खाली हुई थी। इस चुनाव के साथ, लीडिया थॉर्प विक्टोरिया से सीनेट में चुनी जाने वाली पहली आदिवासी महिला बन गईं। इसके बाद 2022 में, उन्हें फिर से सीनेट के डिप्टी लीडर के रूप में चुना गया। फरवरी 2023 में, उन्होंने ग्रीन्स पार्टी छोड़ दी क्योंकि वह आदिवासी आवाज़ों के लिए प्रस्तावित जनमत संग्रह के समर्थन के खिलाफ थीं।
किंग चार्ल्स का विरोध क्यों?
लीडिया थॉर्प ने किंग चार्ल्स के सामने सीधे जाकर आरोप लगाया कि ब्रिटिश साम्राज्य ने उनके पूर्वजों पर अत्याचार किए और उनका नरसंहार किया। उन्होंने ज़मीन और आदिवासी संपत्तियों की वापसी की मांग की। इस विरोध के बाद उन्हें सुरक्षा कर्मियों ने बाहर ले जाया गया। बाद में, थॉर्प ने बीबीसी को बताया कि उनका उद्देश्य किंग चार्ल्स को एक स्पष्ट संदेश देना था कि “भूमि का स्वामित्व उन लोगों के पास होना चाहिए जो उस भूमि से संबंधित हैं।”
ब्रिटिश साम्राज्य और आदिवासी अधिकारों पर थॉर्प की राय
लीडिया थॉर्प ने ब्रिटिश राजघराने पर कई बार आरोप लगाए हैं और कहा है कि वे ऑस्ट्रेलिया के वैध शासक नहीं हैं। उनका मानना है कि ब्रिटिश साम्राज्य ने आदिवासी लोगों की ज़मीनों पर कब्जा किया और उनके संसाधनों को लूटा। थॉर्प एक शांति समझौते की वकालत करती हैं, जिसमें आदिवासी और गैर-आदिवासी ऑस्ट्रेलियाई लोगों के बीच ऐतिहासिक अन्याय को सुलझाया जा सके। वह मानती हैं कि एक गणराज्य की दिशा में आगे बढ़ने के लिए एक संधि प्रक्रिया मददगार हो सकती है।
उनकी सक्रियता का गहरा संबंध उनके बचपन से है, जहां उन्हें काले कार्यकर्ताओं और उनके संघर्षों से प्रेरणा मिली। उन्होंने 2022 में कहा था, “मैं इस काले संघर्ष में पैदा हुई हूं और मुझे कुछ और नहीं पता।”
लीडिया थॉर्प के प्रमुख विरोध प्रदर्शन
लीडिया थॉर्प ने हमेशा अपने विरोध प्रदर्शनों के ज़रिए अपनी आवाज़ बुलंद की है। 2020 में, सीनेट में शपथ ग्रहण समारोह के दौरान उन्होंने पारंपरिक पोसम-स्किन का लबादा पहनकर ब्लैक पावर सलाम दिया और आदिवासी संदेश छड़ी थामी, जिस पर 441 निशान थे। ये निशान उन आदिवासी मौतों को दर्शाते थे, जो 1991 में शाही आयोग के बाद से पुलिस हिरासत में हुई थीं।
2022 में, जब वह पुनः चुनी गईं, तो उन्होंने रानी एलिजाबेथ द्वितीय को “उपनिवेशवादी महामहिम” कहकर संबोधित किया, जिसके लिए उन्हें अपनी शपथ फिर से लेनी पड़ी। उनकी बयानबाजी और विरोध अक्सर चर्चा का विषय बने रहते हैं, लेकिन इनसे आदिवासी अधिकारों और औपनिवेशिक इतिहास पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
थॉर्प के हालिया विरोध की प्रतिक्रिया
लीडिया थॉर्प की किंग चार्ल्स के खिलाफ तीव्र प्रतिक्रिया ने न केवल ऑस्ट्रेलिया में बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी ध्यान आकर्षित किया। हालांकि, कुछ आदिवासी नेताओं ने उनके इस कृत्य की आलोचना की है। ऑस्ट्रेलियाई आदिवासी बुजुर्ग वायलेट शेरिडन ने कहा, “लीडिया थॉर्प मेरे या मेरे लोगों की ओर से नहीं बोलती हैं, और मुझे यकीन है कि वह कई प्रथम राष्ट्र के लोगों की ओर से नहीं बोलती हैं।” वहीं, पूर्व सीनेटर नोवा पेरिस, जो स्वयं पहली आदिवासी महिला थीं, ने उनके विरोध को “शर्मनाक और निराशाजनक” कहा।
लेकिन कई कार्यकर्ताओं ने थॉर्प के विरोध की सराहना भी की। बंडजालुंग वकील और लेखिका वेनेसा टर्नबुल-रॉबर्ट्स ने कहा, “जब थॉर्प बोलती हैं, तो उनके साथ उनके पूर्वज भी बोलते हैं।”
लीडिया थॉर्प का किंग चार्ल्स के खिलाफ विरोध केवल एक राजनीतिक घटना नहीं है, बल्कि यह ऑस्ट्रेलिया में आदिवासी समुदायों के अधिकारों और ऐतिहासिक अन्याय पर लंबे समय से चल रही बहस का हिस्सा है। उनकी आवाज़ ने एक बार फिर यह सवाल उठाया है कि कैसे ऑस्ट्रेलिया अपने औपनिवेशिक अतीत के साथ सामना करेगा और किस प्रकार से वह आदिवासी लोगों के साथ न्याय सुनिश्चित करेगा।
थॉर्प की उग्र शैली, चाहे उसकी आलोचना की जाए या प्रशंसा, ऑस्ट्रेलिया के राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण परिवर्तन लाने की क्षमता रखती है।