Paralympics 2024

“Sheetal devi: Paralympics 2024 की बुल्सआई क्वीन, जिसने पेरिस में तीरंदाजी के साथ दिलों पर चलाया तीर”

17 साल की उम्र में ही Sheetal devi ने पैरालिंपिक तीरंदाजी के क्षेत्र में एक मिसाल कायम की है। जन्म से दोनों हाथों के बिना पैदा होने के बावजूद, उन्होंने जिस जज़्बे और हिम्मत से अपने सपनों को पंख दिए, वह सराहनीय है। शीतल ने एक ऐसी अद्वितीय तकनीक विकसित की है जो न केवल उन्हें प्रतिस्पर्धा में बनाए रखती है बल्कि उन्हें विश्व स्तरीय तीरंदाजों के बीच खड़ा करती है।

धनुष को उठाने के लिए अपने दाहिने पैर का उपयोग करना, डोरी खींचने के लिए अपने कंधे की ताकत का इस्तेमाल करना, और तीर छोड़ने के लिए अपने जबड़े की शक्ति का प्रयोग करना—ये सब शीतल की मेहनत, अभ्यास और समर्पण का जीता-जागता उदाहरण हैं। उनके तीरंदाजी के तरीके में जिस कुशलता और सुंदरता का संगम दिखता है, वह मानो एक कविता की तरह प्रतीत होती है।

पेरिस में 2024 के पैरालिंपिक के दौरान, शीतल देवी ने अपनी पहली ही कोशिश में बुल्सआई लगाकर दर्शकों को स्तब्ध कर दिया। स्टेडियम में गूँजती तालियों की गड़गड़ाहट इस बात का प्रमाण थी कि उन्होंने सभी का दिल जीत लिया। रैंकिंग राउंड में दूसरे स्थान पर रहते हुए, उन्होंने खुद को विश्व स्तरीय तीरंदाज के रूप में स्थापित किया। हालांकि, वह विश्व पैरा तीरंदाजी रिकॉर्ड से मात्र एक अंक से चूक गईं, परंतु उनके आत्मविश्वास और जुझारूपन में कोई कमी नहीं आई।

शनिवार को जब शीतल का सामना चिली की मारियाना जुनिगा से हुआ, तो यह मुकाबला बेहद रोमांचक रहा। दोनों तीरंदाजों ने मैदान पर अपने अद्वितीय कौशल और अदम्य साहस का परिचय दिया। हालांकि, आखिरी मोमेंट पर जुनिगा ने 138-137 से जीत हासिल की, लेकिन शीतल के प्रदर्शन ने सभी को प्रभावित किया।

मुकाबले की शुरुआत में शीतल ने लगातार दो बार 10 और एक बार 9 अंक हासिल करके शानदार बढ़त बनाई। इसके विपरीत, जुनिगा पहले दौर में 28 अंक ही बना सकीं। लेकिन जैसे-जैसे मुकाबला आगे बढ़ा, जुनिगा ने अपनी पकड़ मजबूत की और दूसरे दौर में शीतल की 7 अंकों की तीर से बराबरी का मौका पाया। इसके बाद का मुकाबला कांटे की टक्कर का था, जहां तीसरे दौर के बाद स्कोर 82-82 की बराबरी पर था। अंतिम तीन तीरों में दोनों तीरंदाजों के बीच जोरदार मुकाबला देखने को मिला। दुर्भाग्यवश, शीतल के अंतिम तीर पर 8 अंक ने जुनिगा को 9 अंक के साथ बढ़त हासिल करने का मौका दिया, जिससे वह जीत गईं।

भले ही शीतल देवी क्वार्टर फाइनल में जगह नहीं बना पाईं, लेकिन पेरिस में उनका प्रदर्शन यह साबित करता है कि उन्होंने तीरंदाजी की दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बना ली है। उनकी कहानी ना सिर्फ तीरंदाजी प्रेमियों के लिए प्रेरणा है, बल्कि उन सभी के लिए भी है जो अपने सपनों को जीना चाहते हैं, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी चुनौतीपूर्ण क्यों न हों। पेरिस के इस प्रदर्शन के बाद, शीतल ने न केवल अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया बल्कि अपने अद्वितीय तरीके और हिम्मत से सबका दिल भी जीत लिया।

शीतल की यह यात्रा इस बात की मिसाल है कि इंसानी इच्छाशक्ति और साहस किसी भी शारीरिक बाधा को पार कर सकता है। यह युवा तीरंदाज आज उन लाखों लोगों के लिए प्रेरणा है जो अपने सपनों को हासिल करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। भविष्य में शीतल से और भी बड़े कारनामों की उम्मीद की जा सकती है, और उनकी यह कहानी हमेशा याद दिलाती रहेगी कि सच्चे संघर्ष और समर्पण से कोई भी सपना पूरा किया जा सकता है।

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