Paris Olympics 2024: भारतीय दल की प्रदर्शन यात्रा और आगे की राह
पेरिस ओलंपिक में भारत का प्रदर्शन टोक्यो खेलों की तुलना में भले ही कम दिखा हो, लेकिन यह किसी भी दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण उपलब्धि से कम नहीं था। सात पदकों के शिखर से नीचे उतरते हुए भारत ने छह पदक जीते, लेकिन इसमें कोई स्वर्ण नहीं था। पदक तालिका में भारत 48वें स्थान से 71वें स्थान पर पहुंचा।
नीरज चोपड़ा का दृष्टिकोण
नीरज चोपड़ा, भारत के सबसे अधिक पदक जीतने वाले व्यक्तिगत ओलंपियन, इस दृष्टिकोण पर एक अलग नजरिया रखते हैं। वे कहते हैं, “हम हमेशा पदकों की संख्या की तुलना पिछले ओलंपिक से करते हैं। लेकिन इस बार हमें चौथे स्थान पर रहने के साथ-साथ प्रदर्शन की गुणवत्ता पर भी ध्यान देना होगा।”
भारत ने जितने पदक जीते, उतनी ही बार चौथे स्थान पर भी रहा, और कुछ पदक संभावित विजेता रेसलिंग में वजन की अनियमितताओं के कारण नहीं मिल सके। ये परिस्थितियाँ बताती हैं कि भारत के पास पदक प्राप्त करने की और संभावनाएँ थीं।
टोक्यो से पेरिस: कड़ी प्रतिस्पर्धा और चुनौतियाँ
टोक्यो ओलंपिक में मुक्केबाजी और बैडमिंटन में भारत ने एक-एक पदक जीता था। पेरिस में भी इनसे उम्मीदें थीं, लेकिन इस बार मुक्केबाजी में निराशा मिली। बैडमिंटन में लक्ष्य सेन का प्रदर्शन काबिले तारीफ रहा, लेकिन दबाव के क्षणों में वे अपनी लय को बनाए नहीं रख सके। प्रकाश पादुकोण जैसे दिग्गजों का मानना है कि खिलाड़ियों को जब जरूरी हो, तब प्रदर्शन करना चाहिए और इसके लिए आत्मनिरीक्षण आवश्यक है।
सरकार की भूमिका और निवेश का प्रभाव
भारतीय खेल प्राधिकरण के आंकड़ों के अनुसार, पेरिस ओलंपिक की तैयारी के लिए भारत ने करीब 470 करोड़ रुपये खर्च किए। इनमें से एथलेटिक्स को ₹96.08 करोड़ का योगदान मिला, लेकिन नीरज चोपड़ा के अलावा किसी ने भी पदक नहीं जीता। अविनाश साबले जैसे खिलाड़ियों ने जरूर फाइनल में पहुंचकर उम्मीदें जगाईं।
इस निवेश को दो दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है। पहला, यह कि निरंतर वृद्धि से ही भारत लगातार प्रगति कर सकता है। दूसरा, कि एथलीटों को पर्याप्त समर्थन मिला है और अब उन्हें परिणाम देने की जिम्मेदारी उठानी चाहिए।
एथलेटिक्स और वैश्विक प्रतिस्पर्धा का बढ़ता स्तर
एथलेटिक्स में भारत और विश्व के बीच का अंतर पहले ही बहुत बड़ा है। चोपड़ा जैसे असाधारण व्यक्तियों को अपनी छाप छोड़ने के लिए आगे बढ़ना होगा। गगन नारंग के अनुसार, प्रमुख ओलंपिक खेलों में अन्य देशों के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए भारत को और मेहनत करने की जरूरत है।
शूटिंग में सुधार और आगामी संभावनाएँ
शूटिंग, जिसने टोक्यो से सबक लेकर तीन साल में तीन पदक जीते, भारतीय खेलों की प्रभावी संरचना, कार्यक्रम और योजनाओं का उदाहरण है। मनु भाकर, अर्जुन बाबूता और मिश्रित स्कीट टीम का चौथे स्थान पर रहना भविष्य की उम्मीदों को बढ़ाता है।
हॉकी में निरंतरता और भविष्य की योजना
हॉकी टीम, जिसने पिछले दो ओलंपिक में पदक जीते, भी अगले चार साल के चक्र में आगे बढ़ने का प्रयास कर रही है। भारत के मुख्य कोच क्रेग फुल्टन के अनुसार, “हमें इसे अंडर-21 कार्यक्रम और देश भर के अकादमी कार्यक्रमों से जोड़ना होगा। एक योजना है। बस इसमें समय लगता है।”
निष्कर्ष: नई संभावनाओं की ओर
लॉस एंजिल्स में चार साल बाद ऐसा हो सकता है। पेरिस में भारत का प्रदर्शन भले ही अपेक्षाओं से थोड़ा पीछे रहा हो, फिर भी यह किसी भी दृष्टिकोण से कम नहीं था। जैसा कि नीरज चोपड़ा ने कहा, “यह हमारे निर्माण की क्षमता को दर्शाता है।” भारत को चाहिए कि वह अपनी प्रतिभा को विकसित करने में कोई कसर न छोड़े और भविष्य की संभावनाओं को उज्ज्वल बनाए।